शिष्यत्व का आनंद उठाये बिना गुरु बनना व्यर्थ-#गुरुपूर्णिमा पर विशेष संदेश



आज की समस्या यह है कि शिष्यत्व के अभ्यास के बिना लोग गुरु बनना चाहते हैं-उनका ध्येय केवल व्यवसाय करना ही होता है। वह अध्यात्मिक ग्रंथों का अध्ययन कर उनके शब्द केवल इसलिये रटते हैं कि दूसरे को सुनाकर गुरु की उपाधि धारण कर लें। ज्ञान को धारण करने की शक्ति का उनमें नितांत अभाव रहता है। अपने शिष्यों को सार्वजनिक रूप से काम, क्रोध, मोह, लोभ तथा अहंकार त्यागने का उपदेश देते हैं पर एकांत में साफ कह देते हैं कि भौतिक सामान के बिना संसार नहीं चलता। वह माया के संग्र्रह की प्रेरणा भी देते हैं। सबसे बड़ी बात यह कि शिष्यत्व का आनंद उठाये बिना अनेक लोग गुरु बन जाते हैं जो स्वयं अपना महत्व नहीं जानते। हमारा मानना है कि शिष्यत्व का आनंद के अभाव में सच्च गुरु बनने की शक्ति नहीं आती।
इस गुरु पूर्णिमा के पर्व पर हमारी सलाह है कि किसी व्यक्ति प्रतिमा या ग्रंथ को गुरु बनायें पर उससे मिले ज्ञान का अभ्यास करें। ज्ञानी वही है जिसके पास चेतना के साथ धृति यानि धारणा करने की शक्ति है।
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