#समाजवाद के देसी सिद्धांत अपनाने से ही देश में खुशहाली संभव


#श्रीमद्भागवत्गीता में समाजवाद का ऐसा गूढ़ सिद्धांत है, अगर उसे अपनाया जाये तो भारत में धरती पर स्वर्ग की कामना की भी जा सकती है पर पश्चिम से आयातित विचार से तो केवल सामाजिक वैमनस्य ही फैल सकता है। श्रीगीता के ज्ञान साधक यह अच्छी तरह से जानते हैं कि मनुष्य में किसी भी आधार पर भेद दृष्टि रखना अज्ञान का प्रमाण है पर विदेशी विचारधारा के भारतीय प्रवर्तक तो भेद पहले दिखाते हैं पर एकता की बात करते हैं। पहले वैमनस्य बढ़ाकर फिर शांति का जूलस निकालते हैं।
भारतीय अध्यात्मिक दर्शन के अनुसार तो माया की भारी कृपा मिलने पर मनुष्य को अल्प कृपा वाले की मदद या परमात्मा के नाम पर दान करना चाहिये। विदेशी विचाराधारा के प्रवर्तक तो इस बार पर ही खफा होते है कि एक पर माया की कृपा ज्यादा तो दूसरे पर कम क्यों है? उनके मतानुसार दोनों के बीच आर्थिक समानाता लाने का प्रयास राज्य प्रबंध तंत्र एक से छीनकर दूसरे को करे। माया की अल्प कृपा वाले ज्ञान साधक के मन में अधिक कृपा वाले के प्रति कोई दुर्भाव नहीं होता पर देशी विचारक इसे संतोष तो विदेशी विचारक इसे चेतना की कमी बताते हैं। देशी विचारक मानते हैं कि मनुष्य अगर स्वयं शांत हो तभी उसे सुुख मिल सकता है पर विदेशी विचाकर मानते हैं कि मनुष्य सुखी हो तभी देश में शांति रह सकती है।
इस तरह हमारे देश विदेशी विचारधारा के विद्वानों की राह पर अभी तक चलता आया है इसलिये यहां नारकीय वातावरण बना है। श्रीमद्भागवत् गीता में मनुष्य जीवन के लिये जिन सहज सिद्धांतों का वर्णन किया गया है अगर उन पर अमल किया जाये तो भारत में समाजवादी स्वर्ग बन जायेगा
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