अपने #दिमाग में रखे रिमोट से #स्वयं को चलायें #हिन्दीचिंत्तनलेख #hindu thought



टीवी का रिमोट आपके हाथ में है, आपका स्वयं का रिमोट आपके आज्ञा चक्र-भृकुटि, नाक के ठीक ऊपर-होता है। टीवी पर किसी चैनल के बदलने से आपके मस्तिष्क पर क्या प्रभाव पड़ता है जरा गौर फरमायें।
आज यह लेखक सत्संग से लौटा। कुछ देर शवासन के बाद टीवी खोला। मन में विचार आया कि शवासन करते हुए चलो मनोरंजन के लिये समाचार सुन लें। जिस टीवी चैनल को खोला वहां एक फांसी प्राप्त व्यक्ति के-मृत्यु के बाद आदमी अपने अपराधों से मुक्त हो जाता है इसलिये उसके लिये कोई कड़ा शब्द लिखना ठीक नहीं है-समर्थक एक धार्मिक राजनीतिक नेता का चेहरा दिखाई दिया। समझ में आया कि यह इन्हीं क्लेशी महाशय के सहारे इस रविवार को आकर्षक-सुपर संडे (super sunday)-का रूप प्रदान करेंगे। थोड़ी देर में मन में कांटे चुभते लगे। तब हमने चैनल बदला तो उस पर महामृत्यंजय जाप का संगीत के साथ प्रसारण हो रहा था। हम फिर शवासन में चले गये। उस जाप से मन आनंदित हो उठा। वाह क्या बात है?
कंप्यूटर पर बैठते ही यह विषय मन में आया कि टीवी के रिमोट से ज्यादा शक्तिशाली तो स्वयं का ही रिमोट है जो नाक के ठीक ऊपर लगा हुआ है। अक्सर हम ध्यान करते हैं और उसमें आनंद भी मिलता है। निर्बीज ध्यान में समस्त विषयों से परे हो जाते हैं तब अध्यात्मिक आनंद आता है। कभी कभी न चाहते हुए भी सबीज ध्यान लग जाता है। चाहे जैसा भी लगे सह अनुभव करना चाहिये कि ध्यान में अपने रिमोट की स्वतः साफ सफाई हो रही है। पहले हमें तय करना चाहिये कि चाहते क्या हैं? आज्ञा चक्र प्रभावशाली-विकार रहित-होगा तब हमें सुख की चाहत परेशान नहीं करती क्योंकि तब उसका वही बटन दबता है जो उस स्थान की तरफ ले जाता है जहां आनंद मिलता है। जहां बेजान पड़ा है वहां वह बटन तो स्वत दबा रहता है जो क्लेश की तरफ मन को ले जाता है।
आखिरी बात कोई बतायेगा कि रिमोट को हिन्दी में क्या कहते हैं?
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