जातीय नेता आरक्षण के नाम पर अपने समुदाय को धोखा देते हैं #जातिगत_आरक्षण_बंद_करो



आरक्षण के आंदोलनकारी लोग कभी अपने अपने समाज के नेताओं से यह पूछें कि ‘क्या वास्तव में पूरे सरकार के पास उनके लिये नौकरियां कितनी हैं? सरकार में नौकरियों पहले की तरह मिलना क्या फिर पहले की तरह तेजी से होंगी?’
सच बात यह है कि सरकारी क्षेत्र के हिस्से का बहुत काम निजी क्षेत्र भी कर रहा है इसलिये स्थाई कर्मचारियों की संख्या कम होती जा रही है। सरकारी पद पहले की अपेक्षा कम होते जा रहे हैं। इस कमी का प्रभाव अनारक्षित तथा आरक्षित दोनों पदों पर समान रूप से हो रहा है। ऐसे में जो जातीय नेता अपने समुदायों को आरक्षण का सपना दिखाकर धोखा दे रहे हैं। समस्या यह है कि सरकारी कर्मचारियों के बारे में लोगों की धारणायें इस तरह की है उनकी बात कोई सुनता नहीं। पद कम होने के बारे में वह क्या सोचते हैं यह न कोई उनसे पूछता है वह बता पाते है। यह सवाल बार सभी करते भी हैं कि सरकारी पद कम हो रहे हैं तब इस तरह के आरक्षण आंदोलन का मतलब क्या है?
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